मजदूरों की घर वापसी बनी मजाक
एमपी सरकार की बस को यूपी बॉर्डर पर रोका।
श्रमिक दिवस पर गुना के श्रमिकों के साथ जो हुआ वह किसी क्रूर मजाक से कम नहीं है। जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्रालय में श्रमिकों के हितों में घोषणाएं कर रहे थे ठीक उस समय यूपी की बार्डर पर एमपी से भेजे गए गरीबों के साथ आमानवीय बर्ताव किया गया। गुना क्षेत्र में काम करने आए श्रमिक सरकार के कहने पर अपना सारा सामान समेट कर यूपी में अपने मूल घर जाने के लिए रवाना हुए लेकिन दतिया के पास बॉर्डर पर यूपी पुलिस ने दो बसों को जाने ही नहीं दिया। सारे वैधानिक कागजात होने के बाद भी यूपी पुलिस ने गरीबों को एमपी लौटने पर मजबूर कर दिया। अपने किराए के मकान भी छोड़ चुके इन गरीबों ने बच्चों के साथ किसी तरह रात काटी है। सभी के मन में एक ही सवाल है कि क्या 2 मई की सुबह रोशनी लेकर आएगी और वे अपने घर पहुंच पाएंगे? बस में सवार एक श्रमिक की आपबीती से समझा जा सकता है कि शिवराज सरकार की लापरवाही से गरीबों पर क्या गुजरी है।
यूपी के गोरखपुर के निवासी अय्यूब खान कारपेंटर है और काम के लिए गुना आए थे। वह कुछ सालों से गुना में ही काम कर रहे हैं। लॉक डाउन के कारण काम मिलना बंद हो गया। दो बच्चों और पत्नी, बहन के साथ खुद का पेट भरना मुश्किल हो गया। जब सूचना मिली कि सरकार प्रवासी मजदूरों को गृह प्रदेश में भेज रही है तो उन्होंने भी परिवार के साथ गोरखपुर जाने का फैसला किया। गुना में जिस मकान में किराए से रह रहे थे उसे खाली कर दिया और सामान लेकर 1 मई की दोपहर रवाना हुई बस में सवार हो गए।
गुना से दो बसें रवाना हुई थी और उन बसों में करीब 60 सवारियां थीं। 30 महिलाओं के साथ 12-13 बच्चे भी थे। दो बसों के साथ आगे गुना प्रशासन की एक टीम बोलेरो गाड़ी में सवार थी। दोनों बसों के ड्राइवरों को एडीएम द्वारा दिया गया अधिकृत पत्र भी था। पत्र में राज्य शासन के आदेश का हवाला दे कर यूपी के मजदूरों को झांसी छोड़ कर आने की अनुमति दी गई थी।
प्रवासी मजदूर खुशी-खुशी अपने घर के लिए रवाना हुए मगर दतिया के पास सीमा पर पहुचंते ही उनकी खुशी काफूर हो गई। बकौल अय्यूब यहां यूपी पुलिस ने एमपी सरकार के पास को मानने से इंकार कर दिया। बसों के साथ गई गुना प्रशासन की टीम की भी यूपी पुलिस ने एक न सुनी। यूपी पुलिस ने टका सा जवाब दे दिया कि यूपी प्रशासन से इस बारे में कोई संवाद नहीं किया गया है। इसलिए बसों को जाने नहीं दिया जाएगा। प्रशासन की टीम ने गुना में अपने अधिकारियों से बात भी करवाई लेकिन यूपी पुलिस कुछ सुनने को तैयार ही नहीं हुई।
करीब डेढ़ घंटे की हुज्जत के बाद दोनों बसों को गुना लौटना पड़ा।
लेकिन बात इतनी आसान नहीं थी। मजूदर तो अपने मकान खाली कर गए थे। प्रशासन ने कुछ का इंतजाम किया, कुछ को कहा कि अपने घर जाओ। मजदूर अपने छोड़ चुके किराये के मकान पर पहुंचे। मालिकों ने रहम कर रहने दिया तो ठीक अन्यथा जिला प्रशासन द्वारा बनाए सेंटर पर आ कर रात रूकना पड़ा।
पूरे दिन खाने के लिए इन श्रमिकों को केवल कुछ पुड़ी और चने ही दिए गए थे। बड़ों ने तो जैसे तैसे रात गुजारी मगर बच्चे खाने के लिए परेशान होते रहे।
सभी श्रमिकों को आश्वासन दिया गया है कि उन्हें 2 मई को दोबारा भेजा जाएगा। मगर सभी आक्रोशित हैं कि शिवराज सरकार ने श्रमिक दिवस के दिन उनके साथ कैसा मजाक किया कि यूपी की भाजपा सरकार से बात भी नहीं की और श्रमिकों को उनके पूरे सामान के साथ रवाना कर दिया।