फीलगुड से नहीं जाएगा कोरोना

भूल जाइए कि मध्य प्रदेश में कोरोना रैप-अप होगा.. बहुत दूर की कौड़ी है।

Publish: May 06, 2020, 04:17 AM IST

Dr. Anand Rai
Dr. Anand Rai

मध्य प्रदेश के सबसे शानदार शहर पर किसी की नजर लग गई है। कोरोना के संकट से जूझ रहा इंदौर अपने 60 लोगों की जान गंवा चुका है। पूरे देश में अपनी साफ-सफाई के लिए मशहूर शहर पर कोरोना का कहर ऐसा है कि कोई उसे भारत का वुहान कह रहा है तो कोई उसका स्टेटस खत्म होने की तरफ इशारा कर रहा है। आखिर इंदौर की ये हालत क्यों हुई…  हम समवेत की टीम ने शहर के सामाजिक कार्यकर्ता और पेशे से मेडिकल प्रैक्टिशनर आनंद राय से बात की।

हम समवेत-  कोरोना जैसे अदृश्य दुश्मन से लड़ते हुए करीब एक महीने हो गए। ये लड़ाई कितनी मुश्किल लग रही है…एक डॉक्टर के फौजी बनने की क्या चुनौतियां हैं?

आनंद राय - ये जो लड़ाई है, लगता है कि ये अंतहीन लड़ाई लगने लगी है क्योंकि इसमें दुश्मन अदृश्य है और हम अनुशासित नहीं हैं। हम का मतलब समाज से है। सोसायटी इस बीमारी को लेकर सीरियस नहीं है। किस तरीके से गर्वनमेंट के आदेश का पालन करना है ये वो समझ नहीं पा रही है। देखिए, चुनौती दो लेवल पर है। डॉक्टर के लेवल पर अलग और समाज के लेवल पर अलग।

 

हम समवेत- डॉक्टर्स को किस तरह की चुनौतियां जमीन पर पेश आ रही हैं… क्या सरकारी मदद पर्याप्त है…?

आनंद राय- देखिए… सबसे बड़ी चुनौती थी कि जो हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा है, वो सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच जाए। लेकिन जब हमने देखा कि ये दवा विदेश भेजी जा रही है.. अमेरिका को करीब करीब 100 टन से ज्यादा ये दवा भेजी गई तो हैरानी हुई। मैं बताना चाहूंगा कि ये दवा मलेरिया में यूज होती है, हमारी पैरामीलिट्री फोर्स सीआरपीएफ को दी जाती है और ये दवा नक्सल एरिया में पोस्टेड लोगों को भी दी जाती है। इसके अलावा आर्थराइटिस से पीडित लोगों को ये दवा दी जाती है। अन्य कई बीमारियों में भी इससे इलाज होता है … तो ये दवा जब तक स्वास्थ्यकर्मियों तक नहीं पहुंचेगी उसके अंदर ये कॉन्फिडेंस नहीं आएगा कि हम इस लड़ाई को जीत सकेंगे… क्योंकि जैसे मैदान में कवच पहनकर उतरते हैं, वैसे ही कोरोना के मैदान में उतरने के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की जरूरत है। ये हम कोरोना वॉरियर्स के लिए कवच का काम करती है… लेकिन सरकार के फैसले से हमें लगा कि पहले स्वास्थ्यकर्मियों का ध्यान रखने की बजाय ये सरकार अमेरिका और अन्य देशों की तरफ ध्यान दे रही है। अमेरिका की छोटी सी गीदड़-भभकी से डर गई सरकार।

 

हम समवेत- लेकिन कई रिपोर्ट्स आ रही हैं कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन ऐसी दवा नहीं जो कोरोना से बचाव में अचूक साबित हो। कोरोना प्रीवेंटिव मेडिसिन के तौर पर उसकी कोई खास पहचान नहीं है।

आनंद राय- ऐसी भी कोई रिपोर्ट नहीं जो ये बता सके कि ये दवा कोरोना में असरकारी साबित नहीं हुई है।

 

हम समवेत - असम में डॉक्टर की मौत हो गई?

आनंद राय- उसकी मौत हाइपरटेंशन के कारण हुई है। हो सकता है उसे अन्य बीमारियां भी हों। रिस्क फैक्टर वाले लोगों को ये दवा नहीं लेनी है, या ऐसे लोग जिन्हें किसी प्रकार की एलर्जी है, उन्हें भी ये दवा नहीं लेनी है। लेकिन एक बड़े मास स्तर पर ये दवाई कम से कम हेल्थ वर्क्स को तो दी ही जानी ही चाहिए। और अब हम लोगों के जो वेबनायर्स हो रहे हैं उनमें ये बात निकल कर आई है कि जिन लोगों ने हाइड्रॉकसीक्लोरोक्वीन ली है वो लोग कोरोना से कम प्रभावित हो रहे हैं।

 

हम समवेत - आपके यहां लगभग कितनी दवाइयों (हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन) की जरूरत है?

आनंद राय- देखिए...एक महीने तक इसकी कमी बनी रही...अब जाकर डिस्ट्रिक हॉस्पिटल और दूसरे स्तर तक ये दवाई पहुंची है। अभी भी पीपीई किट्स और ट्रिपल लेयर मास्क स्वास्थ्यकर्मियों तक नहीं पहुंचे हैं। जब तक हम हमारे सैनिकों को पूरी तरह से वेल इक्यूविप (सारी सुविधाओं से लैस) नहीं करेंगे, उन्हें साजो सामान नहीं देंगे और बोलेंगे कि युद्ध में उतर जाइए तो ये एक दुस्साहस होगा... ये तो कुएं में कूदनेवाली बात हो जाएगी। सीधे-सीधे आप सुसाइड करने को बोल रहे हैं…खासतौर से स्वास्थ्यकर्मियों के लिए। तो पहले हमें हमारे हेल्थवर्कर्स को इक्विप करना पडे़गा। इन्दौर में 27 से ज्यादा हेल्थ वर्क्स कोरोना पॉजिटिव हुए हैं। यदि मास्क अच्छी क्वालिटी के होते, यदि पीपीई अच्छी क्वालिटी के होते और यदि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का प्रॉपर डोज मिला होता तो मुझे नहीं लगता कि 27 लोग इससे संक्रमित होते। और 7 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। मैं मेडिकल फ्रैटर्निटी की बात कर रहा हूं….मरनेवालों में दो डॉक्टर हैं। दो नर्स हैं। एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है और एक फार्मासिस्ट। अभी लड़ाई लंबी है। यदि हम अपने लोगों को नहीं बचा पाएंगे तो उनके अंदर कॉन्फिडेंस कैसे आएगा… आगे की लड़ाई के लिए डॉक्टर्स को तैयार कैसे किया जाएगा

 

हम समवेत- क्या सरकार ने आपलोगों की मांगों पर गंभीरता दिखाई है?

आनंद राय- अब जाकर धीरे-धीरे चीजें मुहैय्या कराई जा रही हैं। लेकिन संवेदनशील होने की जरूरत है। इंदौर शहर में जो कलेक्टर हैं वो पीपीई किट पहनकर घूम रहे हैं, प्रेस कांफ्रेस कर रहे हैं। उनको पीपीई की जरूरत नहीं है। N 95 मास्क की जरूरत उन्हें नहीं है। आप ट्रिपल लेयर मास्क भी पहन सकते हैं। ऐसे सुरक्षा कवच की जरूरत उन लोगों को है जो कोरोना के मरीजों के सीधे संपर्क में हैं। केवल डॉक्टर्स जो मरीज के सीधे संपर्क में हैं और वो जो हॉस्पिटल में काम कर रहे हैं। राहत राशि, बीमा राशि, अनुकंपा नियुक्ति में भेदभाव बरती जा रही है। टीआई के परिवार को 50 लाख, पत्नी को सबइंस्पेक्टर की नौकरी और गार्ड ऑफ ऑनर  दिया जा रहा है। जबकि नर्सेज और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को कुछ नहीं मिल रहा।

 

हम समवेत- अब मरीजों की बात। आपने कहा कि इंदौर भारत का वुहान है। शायद मकसद सरकार का ध्यान खींचना हो। लेकिन क्या सरकार का ध्यान इधर गया?

आनंद राय- देखिए...सबसे बड़ी चीज जागरूकता और उपलब्धता है…लोगों को अब तक नहीं पता कि उनको सर्दी, खांसी या बुखार की समस्या है तो उन्हें पहले कहां जाना है। एंबुलेंस के लिए कौन से नंबर पर कॉल करना है। उनको क्या एहतियात बरतने हैं। लिटरेसी लेवल इंडिया में इतनी नहीं है। अभी भी कई सारे अस्पतालों के चक्कर उनको काटने होते हैं। और प्राइवेट हॉस्पिटल तो एक तरह से लूट में लगे हुए हैं। 2000 से ज्यादा मरीज जो संदेह के घेरे में हैं, जिनकी दस दिनों से रिपोर्ट नहीं आयी है। प्राइवेट अस्पतालों ने उनके 2 से 2.5 लाख के बिल बनाए हैं। जबकि 2000 में से ज्यादा से ज्यादा 200 केस पॉजिटिव हो सकते हैं। आजकल प्राइवेट अस्पताल सर्दी खांसी का इलाज भी दो-दो लाख में कर रहे हैं .. कोरोना का डर दिखाकर। उन लोगों को क्यों इतना बिल देना पड़ रहा है। तुरंत उनका स्टेटस होना चाहिए कि अब आप कोरोना नेगेटिव हैं और अगले दिन से उन्हें छुट्टी दे देनी चाहिए..

 

हम समवेत- तो क्या प्राइवेट अस्पताल इस कोरोना की मुसीबत को कमाई के अवसर बना लिए हैं?

आनंद राय- बिल्कुल। और जो लोग प्राइवेट प्रैक्टिसनर्स हैं जैसे अन्य बीमारियों के डॉक्टर्स …जैसे गाइनोकोलॉजिस्ट, पेडियाट्रीशियन वो अभी भी काम पर नहीं आ रहे हैं… पूरा का पूरा वर्क लोड सरकारी डॉक्टर्स पर शिफ्ट हो गया है और डर ये है कि कहीं सरकारी सिस्टम ध्वस्त ना हो जाए। आईएमए के मुश्किल से 2 से 5 फीसदी लोग ही काम पर आ रहे हैं बाकी लोग काम नहीं कर रहे हैं।

 

हम समवेत- हमने तो सुना है कि इंदौर में इलाज की बेहतर सुविधाएं हैं। सरकारी और प्राइवेट दोनों अस्पतालों में कुल मिलाकर 500-600 सैंपल्स की जांच हो रही है। केंद्र की टीम ने भी संतोष जताया है।

आनंद राय- सरकार फील गुड कराने की कोशिश कर रही है। नोटबंदी के बाद भी ऐसा ही किया गया था कि सबकुछ ठीक है। हमने प्वाइंट आउट किया कि सबकुछ ठीक नहीं है। आप दिन में सिर्फ 40 सैंपल्स लगाओगे तो पॉजिटिव की संख्या भी 7-8 ही आएगी ना। हमने मांग की है कि आप ज्यादा से ज्यादा सैंपल्स टेस्टिंग पर लगाएं। तब जाकर असली स्थिति सामने आएगी। जहां तक अच्छी सेवाएं देने का प्रश्न है तो जो  3-4 हॉस्पिटल्स हैं जिन्हें सरकार ने अधिग्रहीत किया है उनके साथ करोड़ों रूपये का एमओयू हुआ है। सरकार से प्रति मरीज के हिसाब से बहुत ज्यादा पैसा ले रहे हैं लेकिन इंदौर में जो 400-500 दूसरे नर्सिंग होम्स हैं, जिनको कि सामान्य बीमारियों का इलाज करना चाहिए, वो अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। क्योंकि जो हार्ट पेशेंट हैं, डायलिसिस कराना है, किसी को अपने बच्चे का इलाज कराना है, वो लोग भटकने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

 

हम समवेत- बहुत सारे सैंपल्स की रिपोर्ट पेंडिंग क्यों है?

आनंद राय- प्राइवेट हॉस्पिटल कोई टेस्ट नहीं कर रहे हैं। टेस्टिंग का काम सरकारी विभाग करता है। सैंपल्स इकट्ठा करके वाइरोलॉजी लैब जाते हैं वहां से रिपोर्ट आती है और अभी तक मैक्सिमम 500 सैंपल्स ही एक दिन में भेजे गए हैं जांच के लिए। और मिनिमम एक दिन में 38 लगे हैं। कभी किट्स की कमी आ जाती है तो कभी लैब का कोई व्यक्ति संक्रमित हो जाता है तो काम बाधित होता है। इंदौर जैसी जगह में हर दिन कम से कम 1000 जांचें होनी चाहिए। जो अभी नहीं हो रहा है। इंदौर में अभी भी करीब डेढ़ हजार सैंपल्स की जांच रिपोर्ट आनी है। यानी कि बैकलॉग है। सैंपल्स के ज्यादा समय तक रखने से भी कंटैमिनेशन का खतरा है। और ज्यादा दिनों के बैकलॉग पर तो सैंपल्स भी रिजेक्ट हो जाएंगे।तो संक्रमण संकट और बढ़ सकता है।

मैं आपको ये भी बताना चाहूंगा कि इंदौर में 80% केसेज एसिंप्टोमैटिक हैं। उनमें बीमारी के कोई लक्षण नहीं हैं। और जबतक हम रैंडम जांच नही करेंगे ये पता लगाना मुश्किल है। इंदौर शहर में दूधवाले, मीडियाकर्मी, पुलिसकर्मी, डॉक्टर्स, पैरामेडिकल सर्विसेज... सबकी रैंडम सैंपलिंग होनी चाहिए। तब जाकर हमें पता चलेगा कि कौन सा वर्ग है जो सबसे बड़े करियर के रूप में काम कर रहा है। दोनों चीजें साथ साथ करनी होंगी।

 

हम समवेत- शहर में डीटेल मेडिकल बुलेटिन आनी क्यों बंद हो गई?

आनंद राय- पहले जब कोरोना बुलेटिन आता था तो उसमें सारी डिटेल होती थी लेकिन अब बंद है। जब लास्ट बुलेटिन आयी थी, डिटेल वाली… तो उसमें 80 % कोरोना पॉजिटिव एसिंप्टोमैटिक थे। ये जो मशीन है RNA PCR, ये मुश्किल से 12 घंटे में रिजल्ट दे देती है.. यानी 12 घंटे के संक्रमण पर भी पहचान कर लेती है। असल में एसिंप्टोमैटिक कैरियर बहुत खतरनाक हैं। 

 

हम समवेत- आपको ये आशंका क्यों है कि इंदौर में 15 दिनों में 30% मामले हो जाएंगे कोरोना के?

आनंद राय- लॉकडाउन में सख्ती नहीं है। रैंडम सैंपलिंग नहीं है… एसिंप्टोमैटिक कैरियर्स घूम रहे हैं तो संक्रमण तो बढ़ेगा ही… मैंने 15-20 दिन पहले जो बोला लो अब साबित हो रहा है… असल में, समस्या ये है कि जानकार लोगों के हाथ में कमांड नहीं है। प्रिवेंटिव सोशल मेडिसिन के किसी अधिकारी के हाथ में कमांड देनी थी। उसकी बजाय आपने पुलिस और अधिकारी के हाथ में महामारी नियंत्रण की कमान दे दी… जैसे कोई कम्यूनल केऑस (सांप्रदायिक झगड़ा) हो...जबकि इसे एक महामारी की तरह डील करना था... ना कि लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति के रूप में इसे डील करना था।

 

हम समवेत- लालफीताशाही हावी हो रही है- आप ये कह रहे हैं?

आनंद राय - पुलिस प्रशासन को तो 15 दिनों तक ये पता नहीं था कि क्वारैंटाइन होता क्या है.. कैसे किया जाता है। मैरिज गार्डन में क्वारैंटाइन हाउस बनाए गए थे, जहां एक हॉल के अंदर 50-50 लोग रखे गए थे। जबकि क्वारैंटाइन ग्राउंड्स में हर व्यक्ति को अलग अलग रखा जाता है। समूह में रखने से संक्रमण और बढ़ेगा...जो बाद में साबित भी हुआ।

जिस शहर में 170 के आसपास हॉस्पॉट हों वहां अभी भी लोग बेफिक्र घूम रहे हैं… खासकर चार पहिया वाले की कोई चेकिंग नहीं होती।

 

हम समवेत- लापरवाही का कितना बड़ा खामियाजा उठाना पड़ सकता है?

आनंद राय- एक रिपोर्ट है कि एक संक्रमित व्यक्ति 460 लोगों को संक्रमित कर सकता है। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। अगर हमने आखिरी संक्रमित व्यक्ति को प्रोटेक्ट नहीं किया तो फिर से शहर में संक्रमण फैल सकता है। ऐसा अन्य देशों में हुआ है। एक बार जो संक्रमण का शिकार हुआ, ठीक हुआ मगर वो दोबारा फिर से संक्रमित हो सकता है.. अभी भी लोगों को संक्रमण का अंदाजा नहीं है… पोस्ट कोरोना दौर बहुत अलग होगा.. आनेवाले दिनों में चीज़ों को नए सिरे से ढ़ालना होगा...।

सबसे ज्यादा समस्या स्कूली बच्चों को लेकर आएगी। कोरोना पीरियड में स्कूल के बच्चे सबसे ज्यादा प्रोन होंगे... हम स्कूल्स नहीं लगा पाएंगे। कम से कम 6 महीने तक… इंदौर, भोपाल उज्जैन.. जहां संक्रमण बहुत ज्यादा है, वहां बच्चों को स्कूल भेजना बहुत रिस्की है।

 

हम समवेत- कोरोना के बाद की दुनिया कैसी होगी.. क्या हमें मालूम है कि कोविड 19 का वायरस आनेवाले दिनों में क्या स्वरूप ले सकता है?

आनंद राय- देखिए कोई भी वायरस होता है वो अपने आप को चेंज करते रहता है...हर दो महीने में उसका स्वरूप बदल जाता है.. इसके बाद वो और ज्यादा मारक बन जाता है। उससे मॉरटैलिटी रेट और बढ़ जाती है... तो इसका एकमात्र इलाज वैक्सीन है...जब वैक्सीन आ जाएगी... हम बड़ी कम्यूनिटी तक इसका लाभ पहुंचा पाएंगे तभी हम इसे कंट्रोल कर पाएंगे। कुछ लोग कह रहे हैं कि प्लाज्मा थिरेपी हमने कर ली है… प्लाज्मा थिरेपी उन लोगों के लिए है, जो मौत के मुहाने पर हैं.. ऐसे लोगों के अंदर प्लाज्मा इंजेकक्ट करके सेल्स रीजेनेरेट करने का काम होता है, तो ऐसे मरीज तो एक फीसदी भी नहीं होते हैं। मगर ये इलाज की जरूरत सभी मरीजों को नहीं होती। अभी सरकार के पास कोरोना के लिए कोई इलाज नहीं है।

 

हम समवेत- लोगों को क्या ये आश्वासन दिया जा सकता है कि मॉरटैलिटी रेट 1 से 2 फीसदी है इसलिए डरने की जरूरत नहीं?

आनंद राय- देखिए इंदौर में तो मॉरटैलिटी रेट 8-9% है। यहां 60 से ऊपर लोगों की मौत हो चुकी है और मेरी जानकारी के मुताबिक इंदौर के येलो हॉस्पिटल्स में 25-30 लोगों की मौत को काउंट नहीं किया जा रहा है… तो आप मानिए कि अगर 100 लोग इंदौर में मरे हैं तो अगर 8-9% मौत की दर है तो ये दुनिया में सबसे ज्यादा है।और चाइना में 2% फीसदी मॉरटैलिटी रेट है। ये तब है जब लॉकडाउन है। पर इस लॉकडाउन के पॉज बटन पर उंगली रखकर आप कब तक बैठेंगे... जिस दिन आपके बच्चे सड़कों पर निकलेंगे... बच्चों के अंदर इम्यून सिस्टम डेवलप होने में 14 साल लग जाते हैं। और ओल्ड एज के लोग भी घरो में हैं। तो जब लॉकडाउन खुलेगा तो और घातक होगा।

 

हम समवेत- इंदौर में कोरोना का वायरस ज्यादा घातक है?

आनंद राय- अभी तक कोई ऐसा रिसर्च नहीं आया है.. अधिकतर लोग अपनी इम्यूनिटी से इसे जीत जाते हैं। सिर्फ 20% क्रिटिकल लोगों को मैनेज करना था जो नहीं हो पा रहा...क्योंकि आप अच्छा ट्रीटमेंट देने में फेल हो रहे हैं। जरूरत थी कि दस बड़े शहरों के डॉक्टर्स की एक चर्चा होती कि कैसे लाइन ऑफ ट्रीटमेंट को आगे बढ़ाया जाए।

 

हम समवेत- सरकार को दुनिया के डॉक्टर्स के बीच चर्चा करानी चाहिए?

आनंद राय- बिल्कुल। सामान्य दिनों में हमारी CME होती है जिसमें बहुत सारे डॉक्टर्स मिलते हैं। नए रिसर्च पर चर्चा होती है। नए लाइन ऑफ ट्रीटमेंट पर चर्चा होती है। लेकिन पिछले एक डेढ़ महीने में मैंने कोई ऐसी चर्चा नहीं देखी जहां दुनिया के बड़े डॉक्टर्स के बीच में कोई चर्चा चल रही हो... सब हवा में इलाज कर रहे हैं। आप अंदाजों पर दवाइयों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिसमें 80% लोग तो अपनी बॉडी की इम्यूनिटी से खुद ठीक हो रहे हैं, 20% मरीजों को आपको गंभीरता से देखना है...शरीर के अलग अलग हिस्सों में कोरोना के असर का अलग अलग इलाज करना होगा...संक्रमण के शुरूआती स्तर पर इलाज जरूरी है।

 

हम समवेत- मध्य प्रदेश की हालत ऐसी क्यों हो गई... हम मौत के आंकड़ों में नंबर 2-3 पर हैं?

आनंद राय- इंदौर में पहला सस्पेक्ट मरीज 31 जनवरी को वुहान से आया था... वो ट्रीटमेंट के बाद ठीक होकर चले गए। उसके बाद 5 मार्च के आसपास 2 मरीज और आए... एक दुबई और एक इटली की युवती थी। वो भी इलाज के बाद ठीक हो गए । 6 मार्च को मेरे द्वारा इंदौर कमिश्नर को थम्ब इंप्रेशन को तत्काल बंद करने की सलाह दी गई थी। मगर ये नहीं हुाआ। अधिकारियों का ध्यान नहीं था। उस समय सबका ध्यान  राजनीतिक अस्थिरता पर भी ज्यादा था और केंद्र सरकार को भी जो लॉकडाउन पहले, दूसरे हफ्ते में घोषित करना था वो बहुत देर से घोषित हुआ। लगता है इसलिए देर किया गया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में विधानसभा के स्पीकर को गलत साबित करना था। मेरा मानना है कि फ्लोर टेस्ट की कवायद में जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हुआ।

 

हम समवेत-  अब लॉकडाउन को खत्म करने की प्रकिया कैसे शुरू होगी… क्या लॉकडाउन को रैप-अप करने का वक्त आ गया है?

आनंद राय- देखिए मध्य प्रदेश में आप भूल जाइए कि रैप-अप होगा.. बहुत दूर की कौड़ी है। 25 से ज्यादा जिलों में बीमारी फैल चुकी है। बाकी जो जिले हैं उन्हें अलग करके काम करना होगा। असल में, व्यवस्था कोरोना से लड़ने में कॉम्पीटेंट यानी सक्षम नहीं है। स्वास्थ्य मंत्री की हरकतों को देखकर लगता है कि अब समय आ गया है कि राजनीतिक दलों को सोचना होगा कि पढ़ेलिखे लोगों को राजनीति में जगह दें। एक उदाहरण ताइवान का देना चाहूंगा , जो चाइना से लगा हुआ देश है। वहां के प्रेसीडेंट बड़े अच्छे अर्थशास्त्री हैं। उन्होंने इतने अच्छे से कोरोना को कंट्रोल किया कि उनके देश में मात्र 300 लोग संक्रमित हुए और मात्र 10 लोगों की मौत हुई। 

 

हम समवेत- आपके ट्वीट्स बता रहे हैं कि सरकार मौत के आंकड़े छुपा रही है... ऐसा क्यों लग रहा है आपको?

आनंद राय- सरकार... भाजपा अब भी इसको इलेक्शन की तरह ले रही है। उसे लगता है कि हमें उप चुनाव में जाना है। जिस तरीके से घंटे, घड़ियाल बजाए गए... दीए जलवाए गए उससे लगता है कि वो चाहती है कि समाज का ध्यान भटकाना जरूरी है। आशंका इसलिए भी बढ़ रही है कि सरकार मेडिकल बुलेटिन में लोगों के नाम बताना बंद कर चुकी है।

हम समवेत- धन्यवाद आपका। आप जैसे स्वास्थ्यकर्मी सैनिकों की जरूरत सरकार को समझनी होगी। तभी कोरोना से जंग में जान और जहान दोनों को बचाया जा सकता है।