मंडिया कॉरपोरेट को सौंपने का इंतजाम
जब सरकारी खरीदी की ऑनलाइन बिक्री में ही इतनी समस्याएं हैं तब अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मंडी एक्ट में बदलाव का हश्र क्या होगा?
मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार द्वारा पूरी मंडी व्यवस्था को कॉरपोरेट को सौपने का इंतजाम कर दिया गया है। भाजपा सरकार ने व्यापारियों को निजी मंडी लगाने एवं मंडी समिति एवं बोर्ड के अंकुश से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है। इसके मद्देनजर कई बातें हमें समझने की जरुरत है| आइए मंडी एक्ट में बदलाव को समझते हैं।
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भाजपा का कहना है कि निजी मंडियों से इन्वेस्टमेंट बढे़गा.. जबकि सच्चाई ये है कि मंडियांं कोई खरीदी एजेंसी नहीं हैं। यह एकमात्र प्लेटफार्म हैं जो किसानों और व्यापारियों को अपनी फसल बेचने के लिए एक जगह उपलब्ध कराती हैं। ताकि खरीदी और बिक्री सरकार की निगरानी में हो। ठीक इसी तरह निजी मंडिया एक प्लेटफार्म होंगी मगर इन मंडियों पर बोर्ड की यानी सरकार की कोई दखलंदाजी नहीं रहेगी। इन मंडियों से इन्वेस्टमेंट नहीं बढेगा और ना ही प्रतियोगिता बढे़गी, बल्कि इसका उल्टा होने की संभावना अधिक है। आशंका है कि बड़े व्यापारी जिस जगह सस्ता मिलेगा वहां से खरीदी करेंगे। जिसके परिणामस्वरुप बाजार में भाव गिर जाएंगे |
दूसरे, कृषि सेक्टर में इन्वेस्टमेंट यानी वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिट और अन्य कोई इन्वेस्टमेंट नहीं बढे़गा क्योंकि यह सेक्टर मंडी प्लेटफार्म से अलग है। इन जगह पर कमोडिटी विशेष ट्रेडिंग के लिए जगह मिलेगी किन्तु मध्य प्रदेश में 50 से ज्यादा फसल का उत्पादन होता है तो बाकि फसलों को कौन और कैसे खरीदी करेगा जबकि हमारे किसान दो से चार फसल ही लेते हैं।
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तीसरे, निजी क्षेत्र सिंगल लाइसेंस और स्वयं की खरीदी के लिए मध्य प्रदेश में सन 2000 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा ITC ई-चौपल को अनुमति दी गई थी। जिसके तहत गाँव-गाँव तकनीकी विकसित करने के लिए कम्पूटर भी लगाये गए थे। गाँवो के छोटे-छोटे किसानों के बीच एक एग्ग्रीगेटर बनाया गया था जोकि उन किसानों को साथ लाते थे जो गाँव में अपनी फसल को बेचते थे। ई- चौपाल में एक दिन पूर्व शाम को फसलों का भाव खोला जाता था ताकि कोई भी किसान बाजार और ITC के भाव में तुलना कर बिक्री कर सके। इसके बाद प्रदेश में मंडियों में नगद भुगतान को गति मिली थी। मगर ITC मंडी बोर्ड के दिशानिर्देश और नियम पर चलती थी। लेकिन अब प्लेटफार्म की जगह खुद खरीददार रहे है |
इसी तरह के देश में पहले भी कई प्लेटफार्म आये है NCDEX का स्पॉट एक्सचेंज, MCX का स्पॉट एक्सचेंज, रिलायंस स्पॉट एक्सचेंज के बाद श्री शुभम लॉजिस्टिक और रूचि जैसे लोगों ने मध्य प्रदेश में ई-मंडी के नाम से प्लेटफार्म लगाए थे जोकि 100 % असफल रहे। और किसानो को मंडी या MSP से ज्यादा भाव नहीं मिला|
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मध्य प्रदेश में मोटे तौर पर 5 लाख करोड़ का समस्त कृषि उत्पादन(फल फूल, सब्जी,अनाज और दूध) है। जिसमें से अभी 50 हजार करोड़ का उत्पादन मंडियो में आता है। इसलिए निजी क्षेत्र इसमें एक कड़ी के रूप में काम करके अपना प्रॉफिट निकलेगा |
अब समझने की जरूरत है कि किसानों को इससे नुकसान क्या होगा : -
- किसानों की उच्च गुणवत्ता वाले अनाज की बिक्री होगी |
- वास्तविक भाव की पुष्टि नहीं होगी
- गुणवत्ता और मूल्य के विवाद की स्थिति में किसान का पक्ष कमजोर रहेगा
- सीमित फसलों की बिक्री होगी
- छोटी मात्रा को बेचने में परेशानी आएगी
- गाँव में कमीशन एजेंट बनेंगे जिसका भार किसानों पर आएगा
बड़े कॉरपोरेट निजी क्षेत्र की मंडियों में रूचि इसलिए ले रहे हैं क्योंकि यह लोग इक्विटी एक्सचेंज, फ्यूचर कमोडिटी एक्सचेंज की तर्ज पर स्पॉट और फॉरवर्ड मार्केट के लिए प्लेटफार्म बनाना चाह रहे हैं। क्योंकि प्लेटफार्म को कभी भी नुकसान नहीं होता। क्योंकि इनको प्रत्येक लेनदेन पर कमीशन मिलता है। जबकि नफा-नुकसान क्रेता और बिक्रेता को ही होता है।
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आज जरूरत थी कि मध्य प्रदेश में 1500 करोड़ वार्षिक से ज्यादा की आय देने वाली मंडियों का इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया जाता। मंडी बोर्ड के माध्यम से मंडियों में किसानों के हित को ध्यान में रखकर फैसले लिए जाते। प्रोसेसिंग यूनिट्स लगाी जातीं। किसानों को वैल्यू बढ़ाने की तरफ ले जाने की कोशिश होती। गाँवों से छोटे-छोटे किसानों की उपज को एकत्रितकर नि:शुल्क परिवहन उपलब्ध करवाया जाता। ताकि हर किसान की उपज मंडी तक पहुंचाई जा सके। लेकिन आम किसान के हित की उपेक्षा करते हुए सरकार ने इसे निजी हाथों को देना उचित समझा। सरकार का ये फैसला कृषि और कृषक दोनों के लिए नुकसानदेह साबित होगा। जबकि हम सब जानते हैं कि कॉरपोरेट का दखल बढे़गा तो वह अपना प्रॉफिट निकालेगा। मतलब साफ है तेल तिल्ली में से निकलता है जिसका सीधा अर्थ किसान की बचत में से कॉरपोरेट कमाएगा| यही नहीं, मध्य प्रदेश में जो मंडी में रिटेल इन्वेस्टर हैं और कृषि उत्पाद का काम करते रहे हैं, उन्हें हटाकर कॉरपोरेट इन्वेस्टर जगह लेंगे और आनेवाले समय में यह लोग उनके कमीशन एजेंट बनकर रह जाएंगे|
इस तरह के मॉडल पर कर्नाटक के गुलबर्गा मंडी में भी शुरुआत की गई थी, मगर वो किसान विरोधी साबित हुई। इसकी प्रक्रिया जटिल थी और किसानों को सामान्य मंडियों से भाव भी ज्यादा नहीं मिले। आज ऑनलाइन ट्रेडिंग की बात करें तो हमारे 84% किसान छोटे और मंझोले दर्जे के हैं। तकनीकीरूप से वो ट्रेडिंग नहीं कर सकते। और ना ही उन्हें इतनी सुविधा उपलब्ध है। क्योंकि जब सरकारी खरीदी की बिक्री ऑनलाइन की जा रही उसमें ही इतनी समस्याएं हैं, तो इसका हश्र क्या होगा, अंदाज़ा लगाया जा सकता है। मध्य प्रदेश में ई अनुज्ञा शिवराज जी से लागू नहीं हुई थी जोकि ऑनलाइन का एक छोटा सा हिस्सा है तो फिर कैसे निजी मंडियो को अनुमति प्रदान की गई?