कोरोना से क्राइसिस में आया प्रिंट मीडिया

कोरोना संक्रमण के खतरे ने मध्य प्रदेश के लगभग 300 अखबारों का प्रकाशन बंद होने की नौबत आ गई है।

Publish: Apr 02, 2020, 05:20 AM IST

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भोपाल।

कोरोना संक्रमण के खतरे ने मध्य प्रदेश के अखबारों पर बुरा असर डाला है। प्रदेश के लगभग 300 अखबारों को अपने प्रकाशन बंद करने की नौबत आ गई है। वजह ये है कि ना तो लोग अखबारों पर भरोसा कर रहे हैं और ना ही अखबार चलानेवालों को पहले की तरह ट्रांसपोर्ट और हॉकर्स की सुविधा मिल पा रही है। लॉक डाउन में प्रकाशकों को अपने अखबार दूर दराज के इलाकों में भेजने में दिक्कत आ रही है।

पीटीआई न्यूज एजेंसी के मुताबिक सबसे बड़ा खतरा छोटे और मझोले अखबरों के अस्तित्व पर है। ऐसे लगभग 300 अखबार इस लॉकडाउन की वजह से संकट में हैं और बड़े समूहों ने भी जिलावार एडिशंस बंद कर दिए हैं। इसका असर प्रदेश के लगभग 95 फीसदी जिलों से निकलनेवाले लगभग 300 अखबारों पर पड़ा है।

हालत ये हो गई है कि प्रदेश के 95 फीसदी जिलों की खबरें आनी बंद हो गई हैं। देवास जिले के हॉकर्स एसोसिएशन ने तो 25 मार्च से अखबार उठाना ही बंद कर दिया है और उनका कहना है कि वो लॉकडाउन खत्म होने पर ही अपना काम शुरू करेंगे। गौरतलब है कि प्रदेश में रजिस्टर्ड 670 अखबारों में से 287 सिर्फ भोपाल से प्रकाशित होते हैं।

देश में तालाबंदी के इस दौर में पेपर प्रिंट करने और घरों तक पहुंचाने की कीमत भी बढ़ गई है और सरकार की तरफ से किसी तरह का विज्ञापन नहीं मिलने से भी प्रिंट मीडिया सकते में हैं। मुश्किल में आई प्रिंट मीडिया को अपना अस्तित्व बचाने के लिए ऑनलाइन एडिशन्स का सहारा लेना पड़ रहा है।

अखबारों की लाख कोशिशों और डब्लूएचओ की सेफ्टी नोटिसों के बावजूद जनता पर ज्यादा असर नहीं हो रहा है। लोग अपनी सेहत के साथ कोई रिस्क नहीं लेना चाहते और वो सूचनाओं के लिए टेलीविजन और ऑनलाइन मीडिया पर शिफ्ट हो गए हैं।

प्रिंट मीडिया के समर्थक मानते हैं कि आज भी समाज छपे शब्दों पर ज्यादा यकीन करता है। लेकिन इस संकट से निकलने के लिए प्रिंट मीडिया को ही रास्ता भी निकालना होगा क्योंकि सरकारें तो हमेशा से ही मीडिया को झुकाने का काम करती रही हैं। कई वरिष्ठ पत्रकारों की मान्यता है कि सरकार तो ऐसे मौकों की तलाश में रहती है ताकि वो प्रेस से आज़ादी का लाभ ले सकें। जबकि जरूरत थे कि सरकार जनता को निष्पक्ष और क्रेडिबल खबरों के लिे मीडिया को बचाने का प्रयास करती। म्

 

कई पत्रकार मानते हैं कि ऐसे कठिन वक्त में प्रिंट मीडिया को बंद करना या प्रकाशन में कटौती करना कोई सही विकल्प नहीं है बल्कि अखबार मालिकों को मिलकर कोई रास्ता निकालना चाहिए। न्यूजपेपर्स के खिलाफ कुछलोग जानबूझकर भ्रामक सूचनाएं फैला रहे हैं। पैनिक बटन दबाने की बजाय मालिकों और मीडिया प्रोफेशनल्स को मिलकर काम करना होगा और सरकार पर भी आर्थिक पैकेज के लिए दबाव बनाना होगा ताकि इस संकट काल में आमलोगों को सही और सटीक सूचनाएं प्रिंट मीडिया के माध्यम से हासिल हो सकें।