गुजरात सीएम का झूठ Corona मरीजों की जान पर भारी!

नकली वेंटिलेटर के प्रयोग से कोरोना मरीजों की मौत के आरोप

Publish: May 22, 2020, 05:45 AM IST

आइए, आपको एक बात बताते हैं. गुजरात में कोरोना से जितने लोगों की मौत हुई है, उनमें से लगभग आधी मौतें अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में हुई हैं. यह अस्पताल कोरोना मरीजों के लिए कब्रगाह बन गया है. गुजरात में कोरोना से मारे गए कुल 749 लोगों में से 351 अकेले अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में मरे हैं.

अब आपको एक और बात बताते हैं. गुजरात में कोरोना मृत्यु दर 5.9 प्रतिशत है और अगर अहमदाबाद की बात करें तो यह 6.7 प्रतिशत है. ये दोनों की आंकड़े कोरोना मृत्यु दर के राष्ट्रीय औसत 4 प्रतिशत से काफी ज्यादा हैं.

ऐसे में अंग्रेजी अखबार अहमदाबाद मिरर में छपी एक रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट में काफी चौकाने वाली बाते हैं. जैसे इस रिपोर्ट में बताया गया कि गुजरात के अस्पतालों में 900 नकली वेंटिलेंटर लगाए गए हैं. 900 में से 230 नकली वेंटिलेंटर अकेले अहमदाबाल सिविल अस्पताल में लगे हुए हैं.

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रिपोर्ट में बताया गया कि इन नकली वेंटिलेटरों को गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने स्वदेशी वेंटिलेटर बताया और ये नकली वेंटिलेटर विजय रूपाणी के दोस्त पराक्रमसिंह जडेजा की कंपनी ज्योति सीएनसी ने तैयार किए हैं. पराक्रमसिंह जडेजा का कहना है कि ये वेंटिलेटर नहीं है. इसके बाद भी गुजरात सरकार इन्हें वेंटिलेटर के तौर पर प्रचारित कर रही है.

इन नकली वेंटिलेटरों के बारे में गुजरात सरकार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “राजकोट की कंपनी ज्योति सीएनसी ने 10 दिन के भीतर धमन-1 नाम से ये वेंटिलेटर तैयार किए हैं. इनको बनाने का खर्च प्रति यूनिट एक लाख रुपये से भी कम है. यह उपलब्धि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वकांक्षी अभियान मेक इन इंडिया में नए आयाम जोड़ेगी.”

रिपोर्ट में एक बहुत ही स्तब्ध करने वाली जो सामने आई है वो यह कि इन 900 वेंटिलेटरों को लगाने से पहले केवल एक मरीज के ऊपर परफॉरमेंस ट्रायल किया गया और इसके लिए किसी एथिकल कमेटी का भी गठन नहीं किया गया. यह मेडिकल डिवाइस रूल्स, 2017 का सीधा-सीधा उल्लंघन है.

इसके साथ ही यह बात भी सामने आई कि वेंटिलेटर मशीनों के पास ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) का लाइसेंस नहीं है. जबकि मेडिकल डिवाइस रूल्स, 2017 के तहत वेंटिलेटर मेडिकल उपकरण की सी और डी श्रेणी में आते हैं और इनके लिए डीसीजीआई का लाइसेंस होना जरूरी है. यह लाइसेंस केंद्र सरकार के कार्यक्षेत्र में आता है.

ज्योति सीएनसी के सीएमडी पराक्रमसिंह जडेजा ने स्वीकार किया है कि उनके पास डीसीजीआई का लाइसेंस नहीं है लेकिन एक प्राइवेट लैब में उन्होंने इनका परफॉरमेंस ट्रायल किया है. हालांकि, लाइसेंस हासिल करने के लिए एक एथिकल टीम के सामने इनका परफॉरमेंस ट्रायल करना जरूरी है, जो इसके लिए नियम और परिस्थितियां तय करती है.

इन नकली वेंटिलेंटरों को राज्य में कोरोना से हो रही अत्यधिक मौतों से जोड़कर देखा जा रहा है. खासकर अहमदाबाद सिविल अस्पताल में हुई 351 मौतों को.

गुजरात के वडगाम से विधायक जिग्नेश मेवानी ने कहा, “मुख्यमंत्री इतने नादान नहीं हैं कि उन्हें नकली और असली वेंटिलेटर में फर्क ना मालूम हो. उन्होंने जनता के भोलेपन का फायदा उठाकर लोगों की जिंदगियों से समझौता किया है और अपने पूंजीपति दोस्तों को मुनाफा पहुंचाया है.”

वहीं गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष अमित चावड़ा ने गंभीर सवाल पूछे हैं. उन्होंने लोगों के जीवन को जानबूझकर खतरे में डालने के लिए विजय रूपाणी की बीजेपी सरकार और प्रशासन की आलोचना की है. साथ ही उन्होंने यह भी जानना चाहा है कि कितने कोरोना मरीजों को इन नकली वेंटिलेटरों पर रखा गया.  

अहमदाबहाद सिविल अस्पताल में कोरोना से हुई साढ़े तीन सौ से अधिक मौतों को नकली वेंटिलेंटरों से जोड़ते हुए उन्होंने इस पूरे मामले में जांच की मांग की है.

उन्होंने कहा, “बीजेपी सरकार यह जानती थी कि धमन-1 से कोरोना वायरस मरीजों का इलाज नहीं किया जा सकता है लेकिन इसके बाद भी सरकार ने इन नकली वेंटिलेटरों को अस्पतालों में लगाया. गुजरात के लोगों को शक है कि इन स्वदेशी वेंटलेटरों की वजह से ही अहमदाबाद सिविल अस्पताल में इतने लोगों की जान गई है. इसका जवाब सरकार को देना चाहिए.”

कोरोना वायर को लेकर गुजरात के हालात ठीक नहीं है. स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए केंद्र सरकार एम्स निदेशक के नेतृत्व वाली टीम को अहमदाबाद भेज चुकी है.